- विवेक सिंह
आप बडे ब्लॉगर हो माना । हमने जरा देर से जाना ॥
ब्लॉग ब्लॉग विचरण करते थे । टिप्पणियाँ अर्पण करते थे ॥
नारी ब्लॉग जहाँ भी देखा । हुए दण्डवत मत्था टेका ॥
संकट पुरुषों पर था भारी । पर हम पूज रहे थे नारी ॥
स्वकर्तव्य हम निभा न पाए । अब क्या होता पर पछताए ॥
पश्चाताप अनल है मन में । हुआ बोझ सा यह जीवन में ॥
प्रायश्चित करने का मन है । आप बताएं क्या साधन है ॥
आशा है माफी पाएंगे
- विवेक सिंह
संदर्भ: चिट्ठाचर्चा
लिंक: http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/02/blog-post_802.html
3 comments:
हा हा हा माफ किया जी शुभकामनायें
:):)
Bhadiya Andaaz :)
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
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