-सृजन शिल्पी
चिट्ठाकारी करते समय भी हम अक्सर ऐसी बातें कर जाया करते हैं, जिनकी कसौटी पर शायद हम खुद खरे नहीं उतरते। दूसरों की कमियों की आलोचना करना, दूसरों की नैतिकता का रखवाला बनना और दूसरों को उपदेश देना जितना सहज है, उतना ही कठिन है खुद अपने गिरेबान में झाँकना और अपनी कमियों को दूर करने की कोशिश करना। कोई प्रवचनकर्ता मंच से जितने सुन्दर और प्रेरक सदुपदेश देता है, अपने व्यक्तिगत जीवन में अक्सर उसके ठीक विपरीत आचरण करता हुआ पाया जाता है। इसी तरह, कई अध्यापक भी अपने छात्रों से जिन नैतिक आदर्शों की बात करते हैं, अपने व्यक्तिगत जीवन में उनके ठीक विपरीत आचरण करते हैं।
-सृजन शिल्पी
संदर्भ: सृजन शिल्पी
लिंक: http://srijanshilpi.wordpress.com/2007/08/04/daily_routine/
2 comments:
उतना ही कठिन है खुद अपने गिरेबान में झाँकना और अपनी कमियों को दूर करने की कोशिश करना। nice
NICE !
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