- अरविंद मिश्रा
मगर आप या कोई अन्य किस अधिकार से कुश के प्रवक्ता बन रहे हैं -क्या कुश खुद मुखर नही हैं -यदि कुश यही बात कह दें तो मैं उनसे क्षमा मांग लूंगा ! बिना शर्त ! मुझमें कोई सीनियरिटी भाव नहीं है -बच्चे को मुखर कीजिये ! कब तक उसका मुंह दबाये रखियेगा ! उचित है अब "बच्चा'ही बोले ! चच्चा लोग तनिक चुप रहें !
- अरविंद मिश्रा
सन्दर्भ: क्वचिदन्यतोअपि..........!
लिंक: http://mishraarvind.blogspot.com/2009/04/blog-post_08.html
Monday, January 18, 2010
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6 comments:
यह है ठांव कुठाँव घात.....आह !!
मैडम बहुत नृशंस हो सचमुच !!!!
किसी के प्रति स्नेह के अधिकार को भला कौन परिभाषित कर पाया है ?
और.. किसी के परस्पर स्नेह पर प्रश्नचिन्ह लगाने का अधिकार भला किसने पाया है ?
ise kahte hain khod-khod kar nikalna.. bahut khoob, aise hi purane kabra khodte raho..
बड़ी स्टाइल से गंद मचाए हो भाई (या बहन) जो भी हो.
nice
Ise kahte hain chootiyaapa.
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