-सुरेश चिपलूनकर
तेजतर्रार की परिभाषा क्या होनी चाहिये? यह आप तय करें… दो साल की ब्लॉगिंग यात्रा के दौरान मेरा अनुभव तो यह रहा है कि यदि आप "वरिष्ठ"(?) और "गम्भीर"(?) चिठ्ठाकार कहलाना चाहते हैं तो अव्वल तो आप किसी ऐरे-गैरे चिठ्ठाकार के लेखन पर कोई टिप्पणी ही न करें, यदि करें भी तो इस सलाहियत भरे अन्दाज में कि लिखने वाला आत्महत्या के बारे में सोचने लगे, और वरिष्ठ-गम्भीर बनना भी इतना आसान नहीं है, जैसे ही कोई खतरनाक किस्म का विवाद उठे, बस नरसिंहराव की तरह मुँह में चाकलेट डालकर मौनी बाबा बन जाओ, अब चॉइस आपकी है कि आप तेजतर्रार बनना चाहते हैं या गम्भीर?
-सुरेश चिपलूनकर
संदर्भ: चिट्ठाचर्चा
लिंक: http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/02/blog-post_16.html#comment-3898409426771973198
12 comments:
ऐरे हम खुद ठहरे, और गैरे (गैर ) कोई रहा नहीं ,रही टीप की बात , तो इस हिसाब से वरिष्ठ न हुए हम कभी अब । जित्ते हैं उतने ही ठीक हैं ,वरिष्ठ न होंगे तो उम्र के हिसाब से भी युवा ही तो कहलाएंगे न फ़िर
अजय कुमार झा
प्रदीप जी
सादर नमस्कार
अब जाकर समझा मुझे लोग टिपण्णी देने से क्यों कतराते हें.कथित नाम जो चर्चा का बिषय है आपके पोस्ट पर मै उन्हें नहीं जानता मगर समीर जी वही उड़नतस्तरी वाले का मै सदा आभारी रहूँगा जिन्होंने मुझे पहला टिपण्णी दे कर इस दुनिया में आने का मौका दिया.
अब मेरी इच्छा ये जानने की हो रही है की ब्लॉग की दुनिया में श्री सुरेश चिपलूनकर के कितने चेले हें.
@ अरशद अली
ये भी मेले जमाने के झमेले हैं
@ अजय कुमार झा
वैसे हमारी अभिलाषा इतनी सी है कि आपके लिए कोई गैर रहा नहीं और हमें भी किसी से बैर नहीं तो ...
@ प्रदीप वर्मा या सुरेश चिपलूनकर
अब ऐरे की सूची का जारी कर दें एक पैरा।
और यह वर्ड वेरीफिकेशन भी तो एक भीषण झमेला
पांच बार में क्लियर हुआ है जी
हमे तो यह स्टाईल मालूमे नहीं था भाई..वरना कबके वरिष्ट बन जाते...
सुरेश जी की बात दम है | गंभीर चिट्ठकार बनना है तो एसा ही करना पड़ेगा |
सुरेश जी ने ऐसे गंभीर चिट्ठकारों पर बहुत बढ़िया व्यंग्य किया है |
very nice!
चलिए आज ई भी पता चल गया कि हम भी ऐरे-गेरे की ही श्रेणी में हैं....तभी तो आपके दर्शन कभी नहीं हुए....
अब ई देखिये.....ऐसन टिपण्णी जो हम दे दिए ईहाँ ...मार दिए न कुल्हाड़ी अपना ही पाँव पर.....अब कहाँ मिलेगा परमोसन ...रह गए हम भी वरिष्ठ होने से ..धुत्त...!!
मुझे पता नहीं था कि मेरे नाम के इतने चर्चे हैं…
अब आपने विषय छेड़ ही दिया है तो ये भी तो बताने का कष्ट कीजिये कि उक्त टिप्पणी मैंने किस सन्दर्भ में की थी…। वरना ऐसे तो बीच में से कहीं से भी, किसी की भी, कोई भी टिप्पणी उठाकर चेपने से "उसने कहा था" वाली थ्योरी फ़िट नहीं बैठेगी भाई। एक पिछली पोस्ट में भी आपने रचना की टिप्पणी को भी Out of Context लिख दिया है, उससे पूरा मतलब ही बदल जाता है।
यदि वाकई कोई गम्भीर बहस चाहते तो पूरे तथ्यों के साथ कहो कि "उसने कहा था"। ब्लाग जगत में पहले भी काफ़ी विवाद हो चुके हैं और मैंने हरेक में बराबरी से हिस्सा लिया है (भागा नहीं, बचा नहीं, तटस्थ नहीं रहा)।
अब एक बात अरशद अली के लिये भी - भाई अरशद जी, चेले पालने का शौक गुरुघण्टालों, मठाधीशों, सत्ताधीशों को होता है। किसी भी स्थिति, विवाद आदि से निपटने में मैं अकेला ही सक्षम हूं, मुझे चेलों की जरूरत नहीं है, क्योंकि न तो मैं बुद्धिजीवी हूं, न ही वरिष्ठ या गरिष्ठ ब्लागर…
@ सुरेश चिपलूनकर
मेरी हर पोस्ट की अंतिम दो लाईनो में संदर्भ व लिंक दिये जाते हैं।जहां से कथन लिया गया है वहां की पूरी पोस्ट कमेंट के साथ पाठक पढ़ सकता है।
Out of Context बातें ही बहस का मुद्दा बनती रही हैं यह आप भी जानते हैं।
मैं यहां बहस करने नहीं आया यह भी जान लीजिये।यह तो बस एक आईना सा है।
चलो अच्छा हुआ आपने स्थिति स्पष्ट कर दी…
अब मुझ जैसे अकिंचन को सिर्फ़ यह समझाने का कष्ट और कर दीजिये कि ये "आईना" दिखाने की आवश्यकता क्योंकर आन पड़ी? अर्थात इस ब्लॉग का उद्देश्य और औचित्य क्या है… ताकि मेरे ज्ञान में वृद्धि हो… :)
किसने दावा किया है "आईना" दिखाने का?
आईना यहीं पड़ा है जिसे देखना हो आ कर देख ले वरना मै तो बारी बारी आईना और उनको देख रहा हूं।उद्देश्य और औचित्य तो किसी इंसान के पैदा होने या पैदा करने पर भी पूछा जा सकता है।सभी के अपने जवाब होंगे।
सही कहा आपने… आपके प्रोफ़ाइल के छिपे होने का भी कोई औचित्य और उद्देश्य निश्चित ही होगा… :)
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